फिल्म: सई रा नरसिम्हा रेड्डी
कलाकार: अमिताभ बच्चन, चिरंजीवी,नयनतारा, सुदीप किच्चा, तमन्ना भाटिया, रवि किशन
निर्देशक: सुरेंदर रेड्डी
निर्माता: राम चरण
रेटिंग: 3.5/5
भारतीय सिनेमा में साउथ फिल्मों का दबदबा लगातार बढ़ता जा रहा है। बाहुबली की सफलता के बाद अब बड़ी तादाद में साउथ सिनेमा की फिल्में हिंदी बाहुल्य क्षेत्र में रिलीज हो रही हैं। 2 अक्टूबर को चिरंजीवी की फिल्म सई रा नरसिम्हा रेड्डी हिंदी, तेलुगू, तमिल, मलयालम और कन्नड़ भाषा में रिलीज हुई।
यह स्वतंत्रता संग्राम की सच्ची घटना पर आधारित फिल्म है, जब उय्यलवाडा के पालेदार नरसिम्हा रेड्डी ने अंग्रेजों के खिलाफ जनआंदोलन छेड़ा था जो आगे चलकर 1857 की क्रांति की नींव बना।
कहानी:
उय्यलवाडा के पालेदार नरसिम्हा रेड्डी (चिरंजीवी) बचपन से ही काफी बहादुर होते हैं। शुरू से ही वह मौत को चकमा देने में माहिर रहे हैं। वह अपनी प्रजा के सुख-दुख में हमेशा साथ खड़े रहते हैं। प्रजा भी उन्हें अपने राजा की तरह सम्मान करती है। बचपन से ही उनके मन में अंग्रेजों द्वारा किया जा रहा अन्याय घर कर जाता है। वह अंग्रेजों को अपने देश से जड़ से खत्म कर देना चाहते थें।
नरसिम्हा के इसी जोश को सही रास्ता दिखाते हैं उनके गुरुगोसाई वैनकन्ना (अमिताभ बच्चन)। वक्त के साथ-साथ वह एक शूरवीर बन जाते हैं। इसी बीच अंग्रेजों का अत्याचार बढ़ता देख नरसिम्हा जन आंदोलन छेड़ देते हैं। नरसिम्हा की इस लड़ाई में दूसरे पालेदार भी उनका साथ देते हैं। देखते ही देखते यह आंदोलन एक विकराल रूप ले लेता है और नरसिम्हा अंग्रेजों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन जाते हैं।
रिव्यू:
चिरंजीवी ने फिल्म में शानदार काम किया है। शुरुआत में भले ही उनके किरदार पर उनकी उम्र हावी होती प्रतीत होती है लेकिन फिल्म के आगे बढ़ने के साथ ही उनकी एक्टिंग से लेकर एक्शन सभी उच्च स्तर के नजर आते हैं। सिर्फ चिरंजीवी ही नहीं बल्कि तमन्ना भाटिया से लेकर अमिताभ बच्चन, नयनतारा,किच्चा सुदीप, रवि कृष्णा सभी का शानदार काम देखने को मिलता है। फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष उसका स्क्रीनप्ले और एक्शन है। फिल्म की कहानी में भारतीय सभ्यता, संस्कृति,कला, वैभव और साहस निखरकर सामने आता है।
चिरंजीवी की एंट्री सीन से लेकर क्लाइमेक्स सीन शानदार है। पूरी फिल्म में वह कभी अपनी तलवार से दुश्मन का सिर काटते नजर आते हैं तो कभी अपने तीर से अंग्रेजों का सीना छलनी करते। कॉस्ट्यूम से लेकर शूटिंग लोकेशन्स सभी 1857 से पहले के समय को बखूबी फिल्माते हैं।
जिस तरह के वीएफएक्स का इस्तेमाल किया गया है वह बाहुबली फिल्म की याद दिलाता है। फिल्म में नारी शक्ति और आंदोलन में कला के योगदान को भी अच्छे ढंग से दर्शाया गया है। हालांकि फिल्म का पहला हॉफ थोड़ा धीमा होता है। दूसरे हाफ से कहानी रफ्तार पकड़ती है। फिल्म को करीब 15 मिनट कम किया जा सकता था। वहीं गाने भी उच्च स्तर के नहीं दिखे जो अपनी छाप छोड़ सकते हों।